EVM Kya Hai और ईवीएम मशीन कैसे काम करता है एवं इसकी फुल फॉर्म क्या होती है व चुनाव में इसका का इस्तेमाल कब शुरू हुआ तथा इसके फायदे क्या है
दोस्तों आज हम आपको बताने जा रहे हैं की ईवीएम मशीन क्या होती है और इसको कैसे इस्तेमाल किया जाता है यूं तो ईवीएम मशीन के बारे में सभी लोग जानते होंगे जिसके द्वारा चुनाव में वोट दिए जाते हैं।हमारे देश भारत वर्ष में चुनाव होते हैं तो हम अपना वोट ईवीएम मशीन द्वारा डालते हैं लेकिन पहले यह काम बेलेट पेपर के द्वारा होता था वह काफी लंबा प्रोसीजर होता था, खर्चा भी बहुत होता था, और उसमें टाइम ही बहुत लगता था, इसी बात को मद्देनजर रखते हुए भारतीय निर्वाचन आयोग ने EVM मशीन की प्रक्रिया की शुरुआत की।
लोकसभा चुनाव की गिनती के लिए बेलेट पैपर द्वारा कम से कम 5 दिन लग जाते थे और इसमें बहुत ज्यादा स्टाफ और ज्यादा पैसा खर्च होता था इसी वजह से चुनावी प्रक्रिया काफी महंगी होती जा रही थी इसलिए निर्वाचन आयोग ने ईवीएम मशीन से वोटिंग कराने का फैसला लिया जो काफी अच्छा फैसला साबित हुआ है।
ईवीएम मशीन (EVM) क्या है ?
ईवीएम दो डिवाइसों से मिलकर बनी होती है जिसमे पहले डिवाइस का नाम कंट्रोल यूनिट है और दूसरे डिवाइस का नाम बैलेटिंग यूनिट है यह दोनों डिवाइस एक-दूसरे के साथ एक लम्बे केबिल से जुड़े होते है। इन डिवाइस में कंट्रोल यूनिट, बैलेटिंग यूनिट को कंट्रोल करता है और बैलेटिंग यूनिट वो जिससे वोटर अपना वोट ईवीएम मशीन का बटन दबाकर करता है और कंट्रोल यूनिट का इस्तेमाल मतदान अधिकारी करता है। जब तक मतदान अधिकारी कंट्रोल यूनिट का बटन नहीं दबा देता तब तक कोई भी ईवीएम का बटन दबाकर मतदान नहीं कर सकता।
एक बार वोट डालने के बाद यह मशीन अपने आप लॉक हो जाती है उसके बाद आप कितनी ही बार बटन दबाएँ मगर वोट एक ही बार पड़ता है। इससे वोटिंग होने में जो पहले भ्रष्टाचार होता था वह काफी कम हो गया है और वोटों की गिनती भी जल्दी हो जाती है समय भी बचता है।
यह भी पढ़े: Voter ID Card ऑनलाइन कैसे डाउनलोड करें
ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) शुरू करने का उद्देश्य
भारत निर्वाचन आयोग Electronic Voting Machine का शुरू करने का उद्देश्य यह है कि चुनाव के दौरान होने वाली गड़बड़ी को रोका जा सके और चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता लाई जा सके। इससे चुनाव के बजट में भी कमी आई है पहले ज्यादा पैसा खर्च होता था लेकिन एक बार मशीनों में पैसा खर्च हो गया तो बार-बार नहीं होता वेलपेपर हर बार नए छपवाने पढ़ते थे। मत गणना के लिए स्टाफ ज्यादा लगाना पड़ता था। पहले मतगणना में वक्त ज्यादा लगता था लेकिन अब मतगणना करने में समय बहुत ही कम खर्च होता है।
EVM मशीन की शुरुआत
भारत के निर्वाचन आयोग ने सबसे पहले सन 1982 में केरल राज्य में इसकी शुरुआत की थी। केरल राज्य के परूर विधानसभा क्षेत्र के 50 मतदान केंद्रों पर इसका प्रयोग किया गया था। अगर देखा जाए तो यह एकमात्र परीक्षण था जो सबसे पहले EVM पर किया गया था और उसके बाद ईवीएम मशीन में गड़बड़ी और कई पॉलीटिकल पार्टीज के दबाव के चलते इसका उपयोग रोक दिया गया था। फिर इसमें कुछ सुधार के बाद सन 1998 में इसका इस्तेमाल आम चुनावों में दोबारा शुरू कर दिया गया और सन 2004 में भारत के सभी चुनावों में इसका इस्तेमाल होने लगा जो आज तक जारी है।
ईवीएम पर एतराज
बहुत सी पॉलीटिकल पार्टीज ने ईवीएम में टैंपरिंग के मामलों की शिकायत की है लेकिन कोई भी पॉलीटिकल पार्टी आज तक कोई भी सबूत नहीं दे पाई है कि इसमें टेंपरिंग हुई इसी बात को ध्यान में रखते हुए भारतीय निर्वाचन आयोग ने इसमें एक और डिवाइस जोड़ने का निर्णय लिया है इस नई डिवाइस को जोड़ने के बाद इसमें स्क्रीन लगाई जाएगी और जब मतदाता अपना मत डालने के लिए ईवीएम मशीन का बटन दबाएगा उसी समय कुछ सेकंड के लिए वह जिस कैंडिडेट को वोट डालना चाहता है उसका फोटो स्क्रीन पर आएगा इस बात से यह सुनिश्चित हो जाएगा कि उसका वोट जहाँ डालना चाहता था वहीं पर गया है इसके बावजूद भी बहुत सी राजनीतिक पार्टियों एतराज अभी तक बरकरार है।
ईवीएम मशीन के लाभ
- मतदाता का ज्यादा टाइम खराब नहीं होता और ज्यादा लंबी कतारों में खड़ा नहीं होना पड़ता।
- ईवीएम के द्वारा मतदान की प्रक्रिया जल्दी पूरी हो जाती है।
- पहले बैलेट पेपर को मोड़ने के चक्कर में बहुत से वोट कैंसिल हो जाया करते थे। ईवीएम मशीन में ऐसा नहीं होता
- बहुत से लोग बैलेट पेपर पर मोहर सही जगह पर नहीं लगाते थे जिससे उनको वोट कैंसिल हो जाता था ईवीएम मशीन में ऐसा नहीं है।
- Electronic Voting Machine में जिसको आप वोट देना चाहते हैं उसको ही पहुंचता है।
- स्टाफ कम लगता है और पैसे की बचत भी होती है।
- मतगणना भी जल्दी हो जाती है जिसमें पहले 4 से 5 दिन लग जाया करते थे।
EVM कैसे काम करता है
आपको बता दे EVM की Counting unit booth की प्रेसिडिंग अफसर या पोलिंग अफसर के पास होती है । जो बोलिंग यूनिट को वोटिंग कम्पार्टमेंट के भीतर प्लेस करती है । उस बोलिंग यूनिट में ब्लू बटन्स होते है ।और उसके सामने horizontally labelled किया जाता है ।करेस्पोंडिंग पार्टी सिंबल को और उनके नाम वही कण्ट्रोल यूनिट उस बूथ के अफसर इन चार्ज को एक सुविधा प्रदना करता है ।जिससे वो एक बैलट मार्किट बटन को कण्ट्रोल करते है ।जिससे की नेक्स्ट वोटर अंदर जा सके वोट देने के लिए जगह पहले एक बैलट पेपर को इशू किया जाता था । बैलट यूनिट को नेक्स्ट वोट देने के लिए allow करता है ।
वोट्स की काउंटिंग के दौरान रिजल्ट को आसानी से display किया जा सकता है । वैसे दो safeguards होते है जो रिजल्ट बटन को दबाने से रोका जा सकता है ।जब तक वोट्स काउंटिंग officially आरम्भ न हो जाये । इस बॉटन को जब तक प्रेस नहीं किया जा सकता है जब तक क्लोज बटन को प्रेस किया जाये ।इस बटन को छिपाकरऔर सील्ड करके रखा जाता है और इस सील को काउंटिंग सेण्टर में ही जाकर खोला जाता है ।